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बिना अनुमति भूजल का दोहन व अपशिष्ट जल से फैल रहा पर्यावरणीय संकट, डेयरी इकाइयों पर शिकंजा कसने की तैयारी
शरद कटियार
फर्रुखाबाद : जनपद में वर्षों से संचालित प्रमुख दुग्ध प्रसंस्करण इकाइयाँ नमस्ते इंडिया, आनंदा डेयरी, सीपी मिल्क फूड (ज्ञान डेयरी), अमूल डेयरी तथा अन्य कई औद्योगिक इकाइयाँ बिना वैधानिक अनुमति के प्रतिदिन हजारों लीटर भूजल का दोहन कर रही हैं। इससे न केवल जल संकट गहराने की आशंका है, बल्कि अब इन इकाइयों द्वारा छोड़े जा रहे रासायनिक युक्त अपशिष्ट जल से पर्यावरणीय असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है। प्रशासनिक चुप्पी में जल का दोहन लगातार जारी है।
यूथ इंडिया द्वारा जब इस विषय पर उत्तर प्रदेश जल निगम के फर्रुखाबाद के सहायक अभियंता श्री विपिन कुमार से दूरभाष पर जानकारी प्राप्त की गई तो उन्होंने बताया
“नमस्ते इंडिया ने भूजल उपयोग हेतु NOC के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। अन्य इकाइयाँ बिना अनुमति के संचालित हो रही हैं। जिलाधिकारी महोदय को अवगत कराते हुए शीघ्र ही नोटिस जारी कर विधिक कार्यवाही की जाएगी।”
इन डेयरी इकाइयों में प्रतिदिन हजारों लीटर जल केवल मशीनों की सफाई, दुग्ध प्रसंस्करण और कूलिंग सिस्टम में उपयोग के बाद गंदे अपशिष्ट (Effluent) जल में परिवर्तित हो जाता है। इस अपशिष्ट जल में तेजाब, डिटर्जेंट, कीटाणुनाशक, फॉस्फेट्स व अन्य रासायनिक तत्व सम्मिलित होते हैं, जो बिना उपचारित (Un-treated) छोड़े जाने पर भूमि, जल स्रोत और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
कुछ डेयरी इकाइयाँ Effluent Treatment Plant (ETP) द्वारा जल को आंशिक रूप से शोधित कर अपने परिसर में बागवानी/हरित उपयोग में ले रही हैं। जबकि अन्य इकाइयाँ बिना किसी ट्रीटमेंट के इस जल को खुले में, खेतों, नालों या जलधाराओं में छोड़ रही हैं, जिससे यह दूषित जल अंततः ग्राम्य रिहायशी क्षेत्रों या नदियों तक पहुंचता है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्येक औद्योगिक इकाई को ETP (शोधित जल संयंत्र) स्थापित करना अनिवार्य है। शोधित जल को मात्र नियंत्रित उपयोग (जैसे – बागवानी) के लिए प्रयोग किया जा सकता है। खुले में या प्राकृतिक जल स्रोतों में नालों द्वारा छोड़ना अपराध की श्रेणी में आता है।
जनहित व जल सुरक्षा की अनदेखी
जमीनी हकीकत यह है कि जनपद के कई क्षेत्रों में भूजल स्तर पहले ही खतरे के निशान से नीचे जा चुका है। यदि यह अनियंत्रित दोहन और प्रदूषण यूँ ही जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में जनपद को गंभीर जल संकट व स्वास्थ्य आपदा का सामना करना पड़ सकता है।
प्रशासन के सामने अब दोहरी चुनौती:
अवैध जल दोहन और जल प्रदूषण का है। अब यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जिला प्रशासन बिना अनुमति संचालित इकाइयों पर वैधानिक कार्यवाही करता है या नहीं? ई टी पी विहीन इकाइयों को बंद या नियमन के दायरे में लाता है या नहीं? यदि शीघ्र कार्यवाही नहीं हुई, तो जल संकट, पर्यावरणीय क्षरण और जनस्वास्थ्य खतरे को रोकना कठिन हो जाएगा।