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ताजमहल के पास फायरिंग: देश की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान
शरद कटियार
विश्व धरोहर और भारत की पहचान बन चुका ताजमहल न केवल स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है, बल्कि भारत की पर्यटन अर्थव्यवस्था का भी प्रमुख आधार है। ऐसे में ताजमहल परिसर के पास हुई हवाई फायरिंग की घटना केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रतिष्ठा से जुड़ा मुद्दा है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
बीते रविवार, जब देश-विदेश के पर्यटक इस ऐतिहासिक स्मारक के सौंदर्य में डूबे थे, तभी अचानक दो युवकों द्वारा की गई हवाई फायरिंग ने पूरे क्षेत्र को भय और आशंका के साये में ढक दिया। यह घटना और भी चिंताजनक हो जाती है जब इसे उसी दिन आगरा एयरपोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी से जोड़कर देखा जाता है। क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक है या किसी गहरे षड्यंत्र की झलक?
ताजमहल के 500 मीटर के सुरक्षा घेरे में जबरन प्रवेश का प्रयास और विरोध होने पर गोली चलाकर भाग जाना, यह दर्शाता है कि हमारी संवेदनशील स्मारकों की सुरक्षा व्यवस्था अभी भी कई स्तरों पर कमजोर है।
सवाल उठता है कि अगर यही घटना किसी विदेशी प्रतिनिधिमंडल की मौजूदगी में होती, तो भारत की वैश्विक छवि पर क्या असर पड़ता? क्या पर्यटन मंत्रालय, गृह मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियों को अब भी और बड़ा झटका लगने का इंतजार है?
पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने तत्परता दिखाई, यह सराहनीय है। लेकिन सिर्फ घटनाओं के बाद जागना अब पर्याप्त नहीं है। आज जरूरत है सुरक्षा तंत्र के सशक्त पुनर्गठन की, जिसमें तकनीकी निगरानी, समयबद्ध पेट्रोलिंग और संदिग्ध गतिविधियों पर पूर्व-चेतावनी देने वाले सिस्टम हों।
ताजमहल, केवल एक इमारत नहीं, भारत की सांस्कृतिक विरासत का गौरव है। वहां हुई ऐसी किसी भी घटना को साधारण न मानते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला समझा जाना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि वह दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी के साथ-साथ इस पूरी घटना की गंभीरता से जांच कराए, और ताजमहल समेत सभी हाई-प्रोफाइल स्थलों पर सुरक्षा उपायों की नई रूपरेखा तय करे।
वरना अगली बार यह “चेतावनी” कहीं बड़ी घटना में न बदल जाए — और तब हमारे पास अफसोस करने के अलावा कुछ न बचे।