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आरिश की हत्या के बहाने हमें खुद से एक सवाल पूछना होगा
शरद कटियार
17 वर्षीय मोहम्मद आरिश की हत्या ने केवल फतेहपुर को नहीं, पूरे समाज को झकझोर दिया है। स्कूल से लौटते समय कुछ पूर्व छात्रों द्वारा उस पर किया गया जानलेवा हमला और फिर इलाज के दौरान उसकी मौत — यह कोई सामान्य आपराधिक घटना नहीं, बल्कि समाज में गहराती एक खतरनाक बीमारी का लक्षण है।
हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ छोटी-छोटी बातों पर हिंसा, और मतभेदों पर मृत्यु, आम हो चली है। जब स्कूल और कॉलेज के छात्र ही एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन जाएं, तो यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों के पतन का भी मामला है।
आज के युवाओं में आक्रोश और नफरत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर गलियों तक, नफरत फैलाने वाले लोग उन्हें एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा या संवाद की कोई ठोस पहल नहीं दिखती। घरों में, समाज में, स्कूलों में हम उन्हें नफरत से भर रहे हैं — फिर हैरान क्यों होते हैं जब वे किसी की जान ले लेते हैं?
आरिश की मौत पर एक पक्ष आक्रोश में है, तो दूसरा खामोश। सवाल यह है कि एक निर्दोष छात्र की मौत पर भी हम धर्म, जाति या राजनीति के चश्मे से देखना क्यों नहीं छोड़ पा रहे? हम कब समझेंगे कि इंसान की जान, इंसानियत से ऊपर कुछ नहीं?
जरुरत है, विद्यालयों और कॉलेजों को सिर्फ शिक्षा का नहीं, संस्कार का भी केंद्र बनाया जाय। प्रशासन को नफरत फैलाने वाले तत्वों के खिलाफ तुरंत और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। सामाजिक संगठनों को पीड़ित परिवार के साथ खड़ा होकर युवाओं में जागरूकता फैलानी चाहिए।मीडिया को सनसनी से बचते हुए ऐसी घटनाओं पर गहराई से चर्चा करनी चाहिए।
हम यूथ इंडिया परिवार की ओर से सभी युवाओं से अपील करते हैं — मतभेद हों तो संवाद करें, मनभेद हो तो माफ करें, लेकिन किसी भी हालत में हिंसा को रास्ता न बनने दें। एक आरिश गया है, कल कोई और हो सकता है — शायद आपका अपना।
हमें अब खामोश नहीं रहना है। हमें एक ऐसी पीढ़ी बनानी है जो नफरत के अंधेरे को पीछे छोड़कर ज्ञान, प्रेम और न्याय की राह चुने।
“आरिश अब लौटेगा नहीं, लेकिन शायद उसके बहाने हम खुद को बदल सकें। यही उसका सच्चा न्याय होगा।”
