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सड़कें बनीं मौत का जाल: अमानक निर्माण, गड्ढे और आवारा गोवंश से हर दिन खतरे में इंसानी जान
– इटावा बरेली हाईवे के बुरे हाल, टूट गयीं वेरिकटिंग, और रोड लाइट्स
फर्रुखाबाद। जनपद की प्रमुख सड़कें हों या लिंक मार्ग इन दिनों आम जनता के लिए रोज़ाना की ज़िंदगी में मुसीबत बन चुकी हैं। जिले की लगभग हर मुख्य व आंतरिक सड़क जर्जर हालात में है, और यह बदहाली न केवल विकास की पोल खोल रही है, बल्कि लोगों की जान पर भी भारी पड़ रही है। सड़कें कहीं धंस चुकी हैं, कहीं उखड़ चुकी हैं, और कहीं गहरे गड्ढों ने वाहन चालकों के लिए जानलेवा खतरे खड़े कर दिए हैं। आवारा गोवंशों की भरमार ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। बीते कुछ महीनों पहले करोड़ों रुपये की लागत से बनाए गए इटावा बरेली हाईवे की हालत निर्माण के कुछ ही समय बाद बिगड़ने लगी थी।
यूथ इंडिया ने इस विषय पर प्रमुखता से रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें घटिया निर्माण सामग्री, जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी और ठेकेदारों की मनमानी को उजागर किया गया था। बावजूद इसके न किसी जांच की पहल हुई, न किसी दोषी पर कार्रवाई। नतीजतन, सड़क आज जगह-जगह से धंसी हुई है और डामर उखड़ चुका है। बरसात के दिनों में हालात और भयावह हो जाते हैं।इसी तरह छिबरामऊ फतेहगढ़ मार्ग पर भी हालात बेहद चिंताजनक हैं।
इस मार्ग पर गहरे गड्ढों की भरमार है, जो आए दिन दुर्घटनाओं को न्योता दे रहे हैं। स्कूली वाहन, दोपहिया चालक और राहगीर—सभी को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ता है। हाल ही में इसी मार्ग पर दो युवकों की दर्दनाक मौत ने पूरे जिले को झकझोर दिया, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने आंखें मूंद लीं।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सब कुछ ठेकेदारों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत का नतीजा है। निर्माण कार्यों में मानकों की अनदेखी की जाती है, कमीशनखोरी चरम पर है, और गुणवत्ता की जांच केवल कागजों में की जाती है। यही वजह है कि करोड़ों रुपये की लागत से बनी सड़कें कुछ ही महीनों में टूट फूटने लगती हैं।
बड़ा सवाल यह है कि जब सड़क जैसी बुनियादी सुविधा भी ठेकेदारों की जेब भरने का जरिया बन जाए, तो आम जनता की सुरक्षा और सुविधा की जिम्मेदारी कौन लेगा। क्या फर्रुखाबाद की जनता को बेहतर सड़कें सिर्फ भाषणों और वादों में ही मिलेंगी।
यूथ इंडिया सरकार और संबंधित विभागों से मांग करता है कि इन सड़कों की तत्काल गुणवत्ता जांच कराई जाए, दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो, और जिले की सड़कों को जनहित में दुरुस्त किया जाए। अगर अब भी जिम्मेदार नहीं जागे, तो यह सड़कें आने वाले दिनों में न जाने कितनी और जानें निगल सकती हैं।