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तकनीक, पारदर्शिता और नीति की त्रयी से बदलता खनन परिदृश्य
शरद कटियार
उत्तर प्रदेश की खनन नीति अब केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं, बल्कि राज्य के आर्थिक दृष्टिकोण और विकास की प्राथमिकताओं का जीवंत प्रतिबिंब बन चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रस्तुत खनन क्षेत्र की प्रगति रिपोर्ट न केवल उपलब्धियों की कहानी कहती है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि यदि इच्छाशक्ति दृढ़ हो और दृष्टिकोण स्पष्ट, तो वह क्षेत्र जो दशकों तक भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों का गढ़ माना जाता था, वह भी विकास का मॉडल बन सकता है।
खनिज राजस्व में रिकॉर्ड वृद्धि—केवल दो माह में ₹623 करोड़—यथार्थ में उस समर्पित प्रयास का परिणाम है, जो नीति-निर्माताओं, भू-वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के सामूहिक संकल्प से संभव हुआ है। फॉस्फोराइट, लौह अयस्क, स्वर्ण जैसे खनिजों की पारदर्शी नीलामी, ड्रोन सर्वे और PGRS तकनीक से संभावित क्षेत्रों की पहचान, और वॉल्यूमेट्रिक एनालिसिस से खनन की वैज्ञानिक पड़ताल यह दर्शाते हैं कि राज्य अब कागज़ी खानापूरी से बहुत आगे निकल आया है।
यह स्वागतयोग्य तथ्य है कि जेएसडब्ल्यू, अडानी, टाटा स्टील और अल्ट्राटेक जैसी औद्योगिक शक्तियाँ उत्तर प्रदेश के खनन क्षेत्र में निवेश को लेकर गंभीर हो रही हैं। यह केवल संसाधनों की उपलब्धता के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि अब उन्हें एक स्थिर, पारदर्शी और तकनीकी रूप से सक्षम प्रशासनिक संरचना दिख रही है। SMRI इंडेक्स में ‘कैटेगरी-A’ की दिशा में बढ़ते कदम इस विश्वास की पुष्टि करते हैं।
अवैध खनन पर सख्ती और वाहनों की ट्रैकिंग हेतु GPS आधारित मॉड्यूल, व्हाइट टैगिंग और चेकगेट्स की स्थापना, निस्संदेह प्रशासनिक सतर्कता का उदाहरण हैं। परंतु यह केवल निगरानी का नहीं, बल्कि प्रशासनिक ईमानदारी और जवाबदेही का भी परिचायक है। नदी कैचमेंट क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध को लेकर मुख्यमंत्री का स्पष्ट रुख यह दर्शाता है कि विकास की गति के साथ पर्यावरणीय संतुलन को कोई समझौता नहीं सहना पड़ेगा।
ईंट भट्ठा क्षेत्र में तकनीकी संवाद और नवाचार की पहल भी प्रशंसनीय है। यह खंड वर्षों से नीति उपेक्षा का शिकार रहा है, जहां श्रमिक शोषण और अव्यवस्था प्रचलित रहे हैं। यदि यह क्षेत्र भी तकनीक और संवाद के माध्यम से पुनर्गठित होता है, तो यह सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
इस पूरी विकास यात्रा का सबसे सशक्त पहलू है—”दृष्टि की स्पष्टता और नीतियों की ईमानदारी”। यदि जिला खनन निधि का प्रयोग वास्तव में आंगनबाड़ी, खेल, स्वास्थ्य और जल-संरक्षण जैसे क्षेत्रों में हो, तो यह केवल एक आर्थिक सुधार न होकर, सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में भी कदम होगा।
अंततः, उत्तर प्रदेश का खनन क्षेत्र इस समय एक ऐतिहासिक संक्रमण से गुजर रहा है। यह केवल माटी से धन निकालने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि नीति, पारदर्शिता और तकनीकी समन्वय से नए उत्तर प्रदेश के निर्माण की नींव है। यदि यह रफ्तार बनी रही, तो आने वाले वर्षों में खनन क्षेत्र केवल राजस्व का स्रोत नहीं, बल्कि विश्वसनीय प्रशासनिक नवाचार का पर्याय बन सकता है।